भोर...
रविवार, 26 दिसंबर 2010
धूप रूठी है...
जाने किस बात पर धूप रूठी है
मैं भोर का इंतजार करता रहा
तेरी चाहत का कोहरा घना है
मैं ओस पर चलता रहा
एक आस थी तुम्हें छूने की
मैं हमेशा मचलता ही रहा
दिन तो रोज मिलने आता है
मैं तेरे तसव्वुर में सोया रहा
सांस चलती है, ठहरती है
मैं तेरा नाम लेता रहा
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
नई पोस्ट
पुरानी पोस्ट
मुख्यपृष्ठ
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें