भोर...
रविवार, 19 दिसंबर 2010
भोर मुस्कुराई है...
बेलिबास चांद ने की है शिकायत
पहन रखी है आज “उसने” चांदनी
हुई है रुखसार पे बोसों की गुस्ताखी
बेमुरव्वत धूप भी है आज मदहोश
“उसका” सांवला चेहरा लाल हुआ है
सांझ ढली है, कहीं भोर मुस्कुराई है
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