भोर...
गुरुवार, 16 दिसंबर 2010
आंखें...
बोलती हैं
गुनगुनाती हैं
गीत सुनाती हैं
कहीं रंग भरती हैं
सपने दिखाती हैं
प्यार जगाती हैं
बातें करती हैं
नाराज होती हैं
मान जाती हैं
मुस्कुराती हैं
जान लेती हैं
जिलाती हैं
तेरी आंखें...
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