रविवार, 12 फ़रवरी 2012

गुड़गाँवा

कंक्रीट के जंगलों के दरम्यां
रात के अंधेरे में
नियॉन लाइट्स की रोशनी से
तरबतर इक शहर
बसता है...
जाने कैसे लोग
इसको गुड़गाँवा कहते हैं
गुड़ जैसा मीठा
कुछ भी तो नहीं है यहाँ
पता नहीं
शहर के किस कूचे में
गुड़ मिलते होंगे
दफ्तर, मॉल और
माचिस के डिब्बे सरीखे घर
इन तीन किनारों के बीच
दौड़ती भागती सड़कों पर
आवारा फिरता...
धूल से धुला गुड़गाँवा
दोपहर के वक्त भी
गोधूलि का एहसास कराता
गुड़गाँवा

1 टिप्पणी:

देवेन्‍द्र कुमार देवेश ने कहा…

सुंदर अभिव्‍यक्‍ति। बधाई।