रविवार, 21 नवंबर 2010

एक रोज...

सुबह का अखबार
चाय की प्याली और
एक अधजली सिगरेट
तुम्हें सोचता हूं
एक घूंट पीता हूं
और सांस लेता हूं
आखिरी कश के साथ
तुम कहीं भीतर सी उतर जाती हो
सिगरेट का धुआं
जलता है, सुलगता है
धमनियों में बहता है
मैं सड़क पर खड़ा हूं
वो तुम्हारे घर को जाती है
एक खिड़की गली में खुलती है
मैं अजनबी सा गुजर जाता हूं...

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